सतीश "बब्बा"
कुछ दिन पहले टी वी बिगड़ने पर,
और वीवी के बिगड़ने पर
रात की नींद, दिन का चैन,
हवा - हवाई हो जाता था!
टीवी बनाने और वीवी को मनाने,
की सभी कोशिशें शुरू हो जाती थी,
हैसियत से भी ज्यादा खर्च करते थे,
सब कुछ बेकार, जब तक ए ठीक न होती थी!
अब टीवी बिगड़े या वीवी बिगड़े,
कोई फर्क नहीं पड़ता है,
जब हाथ में मोबाइल होता है,
डेटा टू जीवी होता है!
मोबाइल का फेसबुक, इस्टाग्रम,
मैसेंजर, और वाट्साप, गेम,
फिर क्या कहना जब कोई हसीना,
चैट करके करती फ़रमाइश मरजीना!
समय, समय की बात है भाई,
सबका समय गिरता - उठता भाई,
मोबाइल जब से आया, वीवी भी व्यस्त हुई,
टीवी तो किनारे है, मोबाइल में बात नई!