कविता। "फासले"
सतीश "बब्ब"
जिंदगी के पास बैठा ,
फासले बिलकुल नहीं,
जिंदगी से दूर कितना ,
फासले बताना संभव नहीं!
वह पास मेरे कोमा में थी,
जिंदगी से लड़ रही थी,
मैं होश में होकर भी,
बेहोश मेरी जिंदगी थी!
उसकी एक साँस में अटकी,
मेरी साँस, मेरी जिंदगी थी,
आज जाना अहमियत उसकी,
जीवन में कितनी वह जरूरी थी!
बस चंद साँसों के फासले,
ऐसा लग रहा था गम के काफिले,
कहाँ थे उसके मेरे बीच में फासले,
वह होगी तो साथ होंगे खुशी के काफिले!
जिंदगी वह है मेरी मैंने जाना,
मैं हूँ उसकी जिंदगी यह भी जान ले,
चलेंगे संग - संग कम होंगे फासले,
जिंदगी का अहं पहिया है वह, जान ले!!
सतीश "बब्ब"