सतीश "बब्बा"
बरखा रानी क्यों रूठी हो,
प्यासी धरती को तरसाती हो,
गर्मी से सबको तड़पाती हो,
जंगल, पहाड़ को जलाती हो!
बरखा रानी क्यों विलंब करती हो,
प्रकृति को क्यूँ प्यासी रखती हो,
बरखा रानी जब तुम बरसती हो,
हम बच्चों को खुशियाँ देती हो!
अम्मा मेरी सुन लो मेरी बातें,
बरखा के संग आओ सब गाते,
आंगन में उछल - कूद कर नहाते,
हरियाली में सब कोई खुश होते!
बरखा रानी तुम बरसो अब,
नदियों में हो गहरा, निर्मल जल,
भैया मेरे तैरेंगे मित्रों के संग,
कितना सुंदर नदी गाती, कल - कल!
बरखा रानी तुम जल्दी बरसो,
पहाड़ी से झरने नहीं झरे बरसो से,
पेड़ मर रहे हैं प्यासे बरसो से,
सब विनती करते हैं बरखा रानी से!