सतीश "बब्बा"
जबसे आई शराब गाँव में,
सबकोई बैठा मिले नाव में,
सबके बँध गए घुँघुरू पाँव में,
बहुत कमाल होने लगे दुकान में!
हरिया पीता, रमुआ पीता,
पहलवान संग पंडित भी पीता,
सदन के संग पीने लगी है गीता,
पीकर गाती शर्मा अनीता!
अब दुकान में चखना बिखता,
झूम - झूमकर झबुआ चलता,
मोटर लग गयी पंडित के पाँव में,
जबसे आई शराब गाँव में!
जमींदार घराने के, हवेली वाले पीते,
झुग्गी - झोपड़ी, छप्पर वाले पीते,
पी - पीकर जीते, पी - पीकर मरते,
धूप - छाँव की परवाह नहीं करते!
आधे सूखे, आधे पानी में होते,
गाँव के बच्चे मूत्र पिलाते,
वह होते तब दूसरे लोक की सैर में,
जबसे आई शराब गाँव में!!