कविता। "क्यों थमी कलम"
सतीश "बब्बा"
क्यों थमी कलम मेरी,
क्यों रुकी सभी हरकत मेरी,
साँसें थी रुकने वाली मेरी,
तब हुई कृपा ऊपर वाले तेरी!
मेरी जीवन संगिनी की साँसें,
बस, ताक रहा था मैं जैसे,
मिला चाँद चकोरी को जैसे,
थी प्रीत की डोर बंधी उससे!
आस जगी पुकारा उसने मुझको,
जैसे निर्जीव आत्मा को प्राण मिले,
जब देखा मेरी आँखें उसको,
आँसू कहते प्रेम चरम, थे उसके होंठ सिले!
एक आस जगी, ईश्वर का आभार,
हुई प्रेम की जीत हम दोनों की,
धरती, अम्बर सब गगल उठे,
थी धरती प्यासी जीवन की!
उठा लिया कलम, पहली कविता,
उत्तर मिला, क्यों थमी कलम,
जब गले मिले हम प्रिया, बलम,
फूलों की वर्षा हुई, नया जनम!!