सतीश "बब्बा"
वर्षा रानी तुम आ जाओ,
सूखे ताल - तलैया भर जाओ,
नदी की धार फिर से चला जाओ,
प्यासी धरती को पानी पिलाओ!
कान पकड़ कर कसम सब खाओ,
अब पेड़ों को नहीं काटोगे,
सब मिलकर पेड़ लगाओ,
पर्यावरण को शुद्ध बनाओ!
वर्षा बोली सब बादलों से,
पानी भरकर तुम ले आओ,
हंसकर बोला एक बादल,
कहाँ ठहरें हम तुम बताओ!
जंगलों को मनुष्यों ने काटे,
बाग - बगीचे भी सब काटे,
जहाँ हम बादल चरते थे,
हरे - भरे पेड़ों में खेलते थे!
कलपेगा मानव बहुत अच्छा है,
निर्दयता से पेड़ों को काटा है,
हवा, पानी को प्रदूषित कर डाला है,
इस लिए अनियमित वर्षा हम करते हैं!