कविता। "हँस - हँस के रुलाना है"
सतीश "बब्बा"
यह हवा चलती रहेगी,
यह धरती, अम्बर रहेंगे,
मैं कैसे रहूंगा,
मेरी साँसें थम जाएंगी!
यह रीत पुरानी है,
जिंदगी आनी - जानी है,
छोड़ना कुछ निशानी है,
यादें रह जानी है!
घर जलना है एक दिन,
राख सब बटोरेंगे,
हम याद जरूर आएंगे,
मेरे गीत हँसाएंगे, रुलाएंगे!
कुछ बात करेंगे मेरी,
सब कुछ खोकर के भी,
बहुत कुछ होंगी यादें तेरी,
मैं पागल कवि तू कविता मेरी!
यह धरती, गगन, पानी,
हवा में घुल जाना है,
बस रोते - रोते हँसना,
हँस - हँस के रुलाना है!!
सतीश "बब्बा"