सतीश "बब्बा"
एक आशा थी जीवन की,
वर्षा ऋतु आएगी,
पानी बरसाते बादल आंगन में,
फिर से हँसी लौट आएगी!
नहीं आए बादल,
काले, सफेद, भूरे बादल,
किसी रंग के नहीं आए बादल,
जाने क्यों रूठ गए बादल!
आशा थी मिथुन राशि से चलकर,
कर्क राशि में सूर्य प्रवेश,
वर्षा ऋतु कायम कर,
पानी बरषेंगे झर - झर - झर!
सावन में है धूल उड़ रही,
दादुर, मोर, पपीहा, दुखी,
घास, वनस्पतियों सूख गई,
पेड़ों में पत्तियाँ नहीं हुई!
आत्मा मेरी बोल रही है,
पीपल पात सी डोल रही है,
पेड़ काट डाले मानव ने,
दुख रूपी राक्षसी मुंह खोल खड़ी है!!
सतीश "बब्बा"