सतीश "बब्बा"
बूढ़े बाप की परछाई,
फिर भी आती है घर में,
पोता बनकर दादा संग खेले,
किलकारी भर जाती है घर में!
दादी कहती तुम पर गया है,
दादा कहते तुम भी आई पोती बनकर,
यह कैसा अजब तमाशा है,
पोता दादा पर जाता है!
पोता - पोती दादी को चाहते हैं,
पोता दादा की परछाई होते हैं,
यह आटोमैटिक प्रेम गजब है,
दादा दादी को पोता पोती प्यार करते हैं!
बेटा - बेटी से पोता - पोती प्यारे हैं,
कैसे अजब माया के डोरे हैं,
जर्जर हुए शरीर को भी प्यारे हैं,
पोता पोती, नाती नातिन जीवन की साँसें हैं!
बस यही तो जीवन की आशा है,
इन्हीं मायावी फंदों में फंसे जीते हैं,
बूढ़े - बूढ़ी मर मर कर जीते हैं,
इन्हीं के लिए अपमान सहते हैं!!