सतीश "बब्बा"
एक घना वृक्ष पीपल का,
डाली पत्तों से आच्छादित था,
मौसम आ गया वर्षा का,
वर्षा जल से पीपल भी खुश था!
चारों ओर हरियाली फैली ,
सभी जीव नाच रहे थे,
हरियल, तोता, गिलहरी भी,
कोयल, कौआ, पपीहा खुश थे!
पड़ी झड़ी जब सावन की,
कौआ का घोसला था सुरक्षित,
गिलहरी भी अपने महल में थी,
सुखद बिछौना में सोई थी!
आये बंदर जल - भून गए,
पक्षियों, गिलहरी के सुख देखकर,
बंदर बोला, मैं भीग रहा हूँ,
तुम सब आराम करते मुझे देखकर!
बोला पीपल, बंदर भैया मेरे,
तुम भी मेरी डाली में छुप जाओ,
पत्तों से तुम सबको नहीं भीगने दूँगा,
सब परिवार हो मेरे निर्भय सो जाओ!!
सतीश "बब्बा"