कविता। "कहानी"
सतीश "बब्बा"
यह धरती, गगन, पानी,
कुछ दिन की है जिंदगानी,
रंग बदलते हैं,
कभी लाल, कभी धानी!
सुबह को जन्मा है,
दोपहर में मनमानी है,
शाम को ढल जाना है,
एक दिन की जिंदगानी है!
यह मिट्टी का पुतला है,
धरती में मिल जाना है,
यह सूक्ष्म हवा दिल की,
हवा में समा जाना है!
यह रंग गोरा, काला है,
गगन की निशानी है,
ले जाएगा बहाकर लाला,
जिसे कहते सब पानी है!
बस एक कहानी है,
सबको जो लिखनी है,
अच्छाई, बुराई की,
रह जानी कहानी है!!
सतीश "बब्बा"