सतीश "बब्बा"
सावन के तुम काले बादल,
केवल मन तरसाना ना,
तुम्हारी फुहार है गुणकारी,
तनिक जोर लगाना, ना!
सावन के काले बादल जब,
धरती, गगन में छा जाते हैं,
काले भूरे बादल मिल कर जब,
धरती को सींचा करते हैं!
ऐसा लगता है कि, ए काले बादल,
धरती, अम्बर को जोड़ते हैं,
एक प्रणय निवेदन नव यौवना का,
प्राकृतिक मिलन कराया करती हैं!
तब, सावन के काले, भूरे बादल,
प्रेम की पराकाष्ठा दर्शाते हैं,
उस मधुर मिलन की बेला में,
मोर, पपीहा, दादुर संगीत सुनाते हैं!
तब, सावन के काले बादल खुश हो,
गर्जन - तर्जन से शीतल जल बरसाते हैं,
तब, खुशी के गीतों से, बूढ़े बच्चे बन जाते हैं,
इस सावन से हम यही आसरा करते हैं!!