कविता। "रिश्तेदारी में"
सतीश "बब्बा"
रिश्ते की रिश्तेदारी में,
उलझ गया है मेरा मन,
कभी काका के मन में खटका,
कभी दादा के मन में अटका!
यह नानी बड़ी सयानी है,
दादी की प्रीत पुरानी है,
यह मम्मी, मम्मा हो गई है,
अम्मा की नहीं कोई सानी है!
भैया प्रेम बहुत करते हैं,
उलझ गए भाभी की जुल्फों में,
माँ सी मौसी प्यारी है,
रिश्ते की रिश्तेदारी में!
बहना की बातें क्या कहना,
जीजा के मन का है गहना,
फूफी की बात पुरानी में,
रिश्ते की रिश्तेदारी में!
मन भटका साली की जुल्फों में,
सुख मिलता घरवाली की बांहों में,
सब रिश्ते होते माँ के आँचल में,
रिश्ते की रिश्तेदारी में!!
सतीश "बब्बा"