कविता। "छींक"
सतीश "बब्बा"
यह छींक भी बड़ी निगोडी,
आए तो दिक्कत नहीं आए,
तो भी दिक्कत ही दिक्कत,
छींक की असमय शिरकत!
जाते वक्त आए तो गाली,
आते वक्त आए तो गोली,
छींक आए तो साली,
छींक आए तो साली!
छींक सामने हो तो गलत है,
छींक खाते वक्त आए तो गलत,
छींक दूध निकालते आए तो गलत,
पंडित से पूछा तो सब गलत!
छींक नहीं आए तो सिर भारी हो जाए,
छींक आए बार - बार, जुकाम हो जाए,
छींक आ जाए तो जी हल्का हो जाए,
छींक ज्यादा गलत, जी भारी हो छींक न आए!
छींक आती तो पंडित बुलाए,
छींक नहीं आती डाक्टर बुलाए,
रुक जाती गर छींक की आनी जानी,
यह छींक भी क्या चीज है जानी
सतीश "बब्बा"