सतीश "बब्बा"
न तब सुख था,
न अब सुख है,
आशाएं तब भी थी,
अब भी है!
कुछ दिन शकुन था,
माँ का आँचल था,
शीतल छाया वह देता था,
वह भी कुछ दिन के लिए था!
तब शकुन था जब,
पिता का साया था,
नहीं किसी का डर होता था,
पिता का डर निडर करता था!
चले गए सब,
छोड़कर मुझको,
बहुत दुखी अब,
माया से डर मुझको!
पूरा जीवन दुख ही दुख
नहीं खोज पाया हूँ सुख,
अंत घड़ी में दुख ही दुख,
अलविदा कह रहा कविता लिख!
सतीश "बब्बा"