कविता। "जीवन"
सतीश "बब्बा"
जीवन की अनेक कलाएं,
तूफानों से गुजरना है,
बस आग की दरिया में,
जीवन को जलाना है!
कभी खारे पानी के दलदल में,
मुंह बंद करके नहाना है,
बालू के बवंडर में, दीवार बनाना है,
काँटों का ताज पहन, आँसू पी जाना है!
जीवन की भूल - भुलैया में,
डूबना उतराना है,
बस आग की दरिया में,
जीवन को जलाना है!
ऊंची बर्फ की सीली का,
एक घर भी बनाया है,
सूरज की किरणों से,
इसे भी पिघल जाना है!
हम जानते सब कुछ हैं,
फिर भी हँसना - हँसाना है,
गीतों की सरगम में,
रोना और रुलाना है!
जब जल जाएगा घर,
तब क्या पछताना है,
बस आग की दरिया में,
जीवन को जलाना है!