हे महाकाल तुझको प्रणाम, मैं समझ गया मैं मानव हूँ, तुम हो सब कुछ ईश्वर,
तुझको तन - मन - धन अर्पण! मैं भूल गया था, तू नहीं भूला, संसार है तेरे दर्शन का भूखा,
इतने बड़े संसार में मैं अदना सा मानव,
मेरी क्या औकात है तेरे आगे प्रभुवर!
मुझे उम्मीद नहीं थी कि, मैं आऊँगा,
तेरे दर पर और अब दर्शन कर पाऊँगा,
हम दोनों तेरे दर पर खूब आते थे,
तभी तो तूने यम को डाट कर जिला दिया है!
फिर अचानक मुझे बुला लिया अपने शरण में,
मैं कितना खुश हूँ, वह न आकर भी खुश है,
अब विनती मेरी सुन लो प्रभुवर,
हम दोनों को बुलाना फिर अपने दर पर!
हम जब तक जन्मे जीवनसाथी यही हो,
तेरे दीवाने तेरी भक्ति रोम - रोम में भरी हो,
हम तेरी पुरी में आते रहें चाहे जहाँ जन्म हो,
बस तेरे ही गुणानुवाद गाते रहें चाहे जैसे हों!!