सोच रहा हूँ, हम कल दो थे,
वह आज सुबह ही छोड़ गए,
हो गया अकेला तेरे दर पर,
उनके लिए भी प्रार्थना करता हूँ!
हे माँ जगदम्बे तेरी महिमा कौन जाने,
तूने बुलाया उनको प्रेरित कर,
आना जाना तो तेरा खेल है माँ,
कोई जरूरी काम देना तेरी कृपा है माँ!
बस मैं भी चला जाऊँगा दोपहर में,
तेरे दर पर बिनती कर सुबह में,
बाबा ने दर्शन दिया हमें कृपा में,
आएंगे हर जनम तोहरे दर में!
फिर क्या जानता हूँ एक दिन मैं भी,
चला जाऊँगा इस तन को छोड़कर,
फिर आऊँगा, आना जाना तेरा खेल भी,
न मैं जानूँगा, न कोई जानेगा बब्बा भी!
एक तुम ही जानोगे, जगत के माई बाप,
वरना यहाँ न मेरा कोई, न मैं किसी का,
फिर भी तेरी माया से लिपटा हूँ महाकाल,
हे माँ हरसिद्धि दया करना हम भी हैं तेरे लाल!
एक बात तो है तेरी कृपा है, तभी तो,
जाकर भी नहीं जाऊँगा, याद बहुत आऊँगा,
किताबों में, कविता में, कहानी में नजर आऊँगा,
अपनी रचनाओं से सभी को हँसाऊँगा, रुलाऊँगा!!
सतीश "बब्बा"