सतीश "बब्बा"
जब आया था,
तब रोया था,
जन्म के समय बहुतों को,
रोते देखा था!
माँ के आँचल में,
सोया था,
शकुन के कुछ क्षण,
तभी पाया था!
बीच में कुछ दिन,
नशे में सोया था,
समझ नहीं पाता,
क्या पाया, क्या खोया था!
बीत गया जब,
समय बचपन का,
जान न पाया,
कब पचपन आया!
अब तो बहुत रोना आया,
न जाने कब बुढ़ापा आया,
मेरी समझ में नहीं आया,
चोरी चोरी खूब रोया!!
सतीश "बब्बा"