सतीश "बब्बा"
क्या यही जीवन है,
शादी विवाह करके,
बच्चे पैदा करना,
उनके लिए कर्ज लेना!
क्या यही जीवन है,
कर्ज में दबकर,
छुप - छुप कर रोना,
बेटों से अपमान सहना!
क्या यही जीवन है,
अपने लिए कुछ नहीं,
दूसरों के लिए संघर्ष,
टुकुर - टुकुर निहारना!
क्या यही जीवन है,
कुत्ते की तरह ताकना,
फिर भी रोटी नहीं पाना,
मृत्यु चिंतन करना!
क्या यही जीवन है,
आत्महत्या की सोचना,
फिर भी नहीं मरना,
घुट - घुट कर मरना!!