कविता। "नन्नू के कक्का"
सतीश "बब्बा"
सुबह - सुबह उठ जाते कक्का,
पानी लेकर एक मटक्का,
करें मुखारी मोटी कक्का,
दौड़ लगाते हैं फिर कक्का!
दौड़ बगीचे तक जाते कक्का,
लौटकर जब घर आते हैं कक्का,
चिड़ियों को दाना डालते हैं कक्का,
रोज का नियम है उनका पक्का!
नहाने में बिलम्ब नहीं करते कक्का,
पूजा जो देखे हो जाए हक्का - बक्का,
चाय नहीं पीते हैं नन्नू के कक्का,
करते नहीं हैं नयन मटक्का!
नाश्ते में फल और कोहरी लेते कक्का,
या फिर मौसमी बालें भूनते कक्का,
खुद खाते, दूसरों को भी खिलाते कक्का,
कभी नहीं गुस्सा करते हैं कक्का!
भोजन चुपचाप करते हैं कक्का,
किसी से नहीं करते धक्का - मुक्का,
दूसरों की भलाई में रहते हैं कक्का,
सबको अच्छी बातें सिखाते हैं कक्का!