सतीश "बब्बा"
जाने को तो सभी जाएंगे,
मेरी तरह कहाँ जाएंगे,
बहुतेरे धन ले जाएंगे,
हम तो खाली हाथ जाएंगे!
इस पत्थर की मूरत शिव को,
बापू मेरे नहवाते मर गए,
मैं भी सुबह नहवाता हूँ इसको,
मेरे भी दिन बहुत चले गए!
एक दिन मैं भी चला जाऊँगा,
संग में कुछ नहीं ले जाऊँगा,
पता नहीं क्या कहा जाऊँगा,
इस मूरत को ही नहवाते मर जाऊँगा!
जाने को तो सभी जाएंगे,
मेरी तरह नहीं जाएंगे,
हाथ - पैर पसारे हम जाएंगे,
सब दौलत में तौले जाएंगे!
जिस घर को मैंने बनाया है,
वहाँ से नाम काटा जाएगा,
यह पत्थर की मूरत चुप रहती है,
मैं, गरीबी में ही मर जाएगा!!