कविता। "चंदामामा"
सतीश "बब्बा"
मम्मी मेरी देख जरा सा,
चले गए हैं सब बादल,
सूरज दादा आँख दिखाएँ,
नहीं करते छाया बादल!
मध्यम - मध्यम शीत हो रही,
खेतों में फसलें लहलहाती,
आकाश की आभा नील हो रही,
धरती संग चाँदनी मुस्काती!!
चंदामामा की छवि न्यारी,
खेल रहे सब संगी साथी,
ऐसा लगता मैं भी जाऊँ,
खेले हम सब साथी - साथी!
ओ मम्मी मेरी, देख जरा सा,
वह कितने सुंदर चंदामामा,
मुझको भी चंदा लेना है,
धरती में लाओ चंदामामा!
मम्मी सोचे क्या करूँ मैं,
जल्दी तसले में पानी भर लाई,
बीच आंगन में रखकर दिखाया,
देख मुन्ना मैं चंदामामा ले आई!!
सतीश "बब्बा"
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