कविता। "गीत खुशी के"
सतीश "बब्बा"
मैं गीत खुशी के कैसे गाऊँ,
गाता था हरदम अब कैसे दोहराऊँ,
माँ का आँचल कहाँ से पाऊँ,
बापू की डाँट अब कहाँ से लाऊँ!
मैं गीत खुशी के कैसे गाऊँ,
दादा की पीठी में चढ़ जाऊँ,
बनाकर घोड़ा उन्हें दौड़ाऊँ,
आब याद में उनकी रोऊँ की गाऊँ!
मैं गीत खुशी के कैसे गाऊँ,
मित्रों के संग पढ़ने जाऊँ,
घर आकर फिर रोब जमाऊँ,
बुढ़ापे का दर्द किसे सुनाऊँ!
मैं गीत खुशी के कैसे गाऊँ,
बचपन गया जवानी छूटी,
साठ बरस में राह न पाऊँ,
आदर नहीं चाहे जहाँ भी जाऊँ!
मैं गीत खुशी के कैसे गाऊँ,
कौन है जिसे अपनी बात सुनाऊँ,
कमर दर्द से छुप - छुपकर रोऊँ,
विनती कर यमराज बुलाऊँ!!
सतीश "बब्बा"