कविता। "भोला पान वाला"
सतीश "बब्बा"
बहुत ही भोलाभाला है,
वह भोला पान वाला है,
बहुत बेरहम वह लगता है,
कोमल पान में कैंची चलाता है!
लगता बहुत ही सीधा है,
खुद तो पान नहीं खाता है,
फिर भी लम्बी लार बहाता है,
अपने पान की तारीफ करता है!
सड़ा कत्था, सड़ी सुपाड़ी रखता है,
पान के ऊपर चूने का लेपन करता है,
लगाकर ब्रास, दबाकर मोड़ता है,
किसी से बनारसी, किसी से देसी कहता है!
पान के साथ ग्राहकों को चूना लगाता है,
आने वाले हर ग्राहक को रिश्तेदार कहता है,
अपनी गोमटी के पीछे किराए से रहता है,
बेचारा किसी की गंदी बातें भी सहता है!
विल्डिंग तो बना नहीं पाया है,
अपना परिवार अच्छे से चलाया है,
ईमानदारी से भरा भोला पानवाला है,
वह भोलाभाला, भोला पानवाला है!
सतीश "बब्बा"