सतीश "बब्बा"
माँ तेरे आँचल के नीचे,
धरती नापूँ गगन छू लूँ,
शेर क्या, बब्बर शेर को भी,
अपनी मुट्ठी में कर लूँ!
माँ तेरे बिन यह जीवन,
कैसे बीत रहा मैं जानूँ,
तेरे जाते ही सब सुख छूटा,
भाई - बहन परिजन छूटा!
कल का हिसाब मांगे जीवन,
दौड़ बहुत है, सुकून नहीं है,
प्रकृति हँसी, फूल फूलते मधुवन,
तेरे बिना सब कुछ फीका है!
जितने थे रिश्ते - नाते सब,
तेरे रहते ही सगे थे सब,
फिर रिश्ते बेगाने हो गए सब,
मैं रोता हूँ बहरे हैं सब!
काश! तुम्हारे आँचल में माँ,
मैं फिर से छुप जाता,
सब मिलते हैं, एक तू नहीं मिलती माँ,
तेरे आँचल में एक पल को विश्राम पाता!!
सतीश "बब्बा"