संस्मरण। "गरीबा"
23 September 2022
सतीश बब्बा की यह पुस्तक अपने - आप में अनूठी है, ऐसा लगता है जैसे हमारी ही कहानी लिखी गई है। एक बार शुरू कर दिया पढ़ना तो फिर अंत तक फिर बंद ही नहीं किया जाता है।
सतीश बब्बा की यह पुस्तक अपने - आप में अनूठी है, ऐसा लगता है जैसे हमारी ही कहानी लिखी गई है। एक बार शुरू कर दिया पढ़ना तो फिर अंत तक फिर बंद ही नहीं किया जाता है।