संस्मरण। "शर्मसार होती इंसानियत "
सतीश "बब्बा"
आज चेहरे में झुर्रियां, सिर के बाल सफेद, मैले - कुचैले कपड़ों को पानी में साफ करने की कोशिश करता वह फटे कपड़ों में लिपटा, अभी भी गजब का लगता था। इस अभाव में भी वह एक पुराना गाना गुनगुना कर पूरी तरह खुश रहने की कोशिश कर रहा था।
मैं उसकी तन्मयता देखकर चकित था। मैंने कहा, "गरीब अब झरने - झरना बंद हो गए हैं। और नदी भी नहीं बहती है। वरना वहाँ साबुन - सोड़े का काम नहीं था सब साफ हो जाता था!"
उसने सिर्फ इतना कहा, "चाचा पायलागूँ, आप पानी लेंगे?"
वह हटना चाहा तो मैंने उसे रोक दिया। और हैंडपंप के पास ही मंदिर में मैं बैठ गया।
मुझे बार - बार बीती बातें याद आने लगी। मेरी यादें बचपन की और गरीबा की बातें बचपन की! मुझसे गरीबा यही कोई साल दो साल बड़ा होगा।
हम पढ़ने जाते और गरीबा बकरी चराने जाता वह भी दूसरे की! वह बचपन से गरीबी में पला - बढ़ा था। उसके पिता ने उसका नाम ही गरीबदास रखा था।
गरीबदास जब कहीं ढोलक बजती, नौटंकी वाले गाँव आते तो उसके पैर थिरकना शुरू कर देते थे।
गाँव के ही एक हारमोनिया मास्टर राममिलन तिवारी ने उसे परखा और उसे नाच सिखाने लगा। वह जल्द ही सीख भी गया।
गरीबदास अब गरीबदास से गरीबा कहलाने लगा। तब नाचने वाला ही गाना भी गाता था। गरीबा में गजब का कमाल था। एक नाच कंपनी वाले ने उसे रख लिया। राममिलन हारमोनिया बजाता और गरीबा गाता भी और नाचता भी।
तब माइक नहीं हुआ करते थे। पूरी महफिल तक नाचकर गाना सुनाता था गरीबा, गजब का हुनर था बंदे में! जब मेकअप गरीबा करता लौंडिया को फेल कर देता।
तब पूना - मुम्बई को बहुत कम लोग जानते थे। जाना तो दूर की बात थी। गाँव में यही एक नाच मनोरंजन हुआ करता था।
एक बार एक गाँव के अमीर सेठ के यहाँ बारात आई थी। तब बारात तीन दिनों की हुआ करती थी। हम वही पाँच या छः में पढ़ते थे। गरीबा भी बारह या चौदह साल का रहा होगा।
सेठ की बारात में इलाहाबाद की सबसे महंगी, खूबसूरत रंडियाँ ,मंजु और सुशीला आई थी। पूरे गांव में शोर था। गाँव के राजा - प्रजा, नर नारी सभी एकत्र थे।
रंडी की महफिल सजी थी। आस पड़ोस के गाँव से भी लोग इकट्ठे थे।
इधर जनवासे से बाहर राममिलन ने गरीबा की महफिल सजा दी। भला रंडी के आगे इनकी महफिल में कौन सामिल होता, फिर भी गरीबा ने एक उस जमाने का फिल्मी तराना छोड़ दिया।
रंडी की महफिल से लोग खिसकना शुरू कर दिया और लोग गरीबा का नाच देखने लगे।
मंजु और सुशीला ने अपना नाच बंद कर दिया और वह भी गरीबा को देखने के लिए आईं। सुंदर मेकअप में गरीबा गजब की खूबसूरती का मालिक था। गजब का स्वर मालिक था वह! अजब का हुनरमंद था वह!
मंजु ने उसे अपने पास बुलाकर उसकी पप्पी ली और दोनों मंजु और सुशीला ने सौ - सौ रुपये उसे इनाम दिया था। तब चार - आठ आना बहुत था। एक रुपया देने वाला बड़ा आदमी हुआ करता था। आज वह दस हजार से ज्यादा कहाया।
बस गरीबा शादी विवाह के बाद भी नाचकर अपना और अपने बच्चों का पेट भरता रहा।
गरीबा कोल - आदिवासी जाति का है। आज इस इंटीरियल में उसकी आवाज और हुनर दबकर रह गयी है।
आज गरीबा साठ के पार हो गया है और लोगों के खेतों में छुट्टा मवेशी को ताकना और रातों दिन जागना पड़ता है। जिल्लत की जिंदगी जीता गरीबा की हालत देखकर शर्मसार होती इंसानियत से मेरा मन बहुत द्रवित हो रहा था।
"चाचा नहा लो!" गरीबा के बुलाने से मैं वर्तमान में लौट आया।
मैंने कहा, "गरीबदास, वह बीते दिनों की याद आती है कि नहीं, अब तो टीबी और बीडियो और मोबाइल के जमाने में तुम खो गए हो!"
उसने मुझे वह गाना सुना डाला, "गुजरा हुआ जमाना आता नहीं दुबारा... ... ...!"
सतीश "बब्बा"
मैं प्रमाणित करता हूँ कि निम्नलिखित रचना मेरी अपनी लिखी हुई मौलिक एवं अप्रकाशित है मैने इसे अन्यत्र प्रकाशनार्थ नहीं भेजा है।
रचना - संस्मरण। ( "शर्मसार होती इंसानियत" )
तारीख - 23 - 09 - 2022
सतीश "बब्बा"
हस्ताक्षर
पता - सतीश चन्द्र मिश्र, ग्राम + पोस्टाफिस = कोबरा, जिला - चित्रकूट, उत्तर - प्रदेश, पिनकोड - 210208.
मोबाइल - 9451048508,
- 9369255051
ई मेल - babbasateesh@gmail.com