shabd-logo

कहानी। "दुश्मन"

23 September 2022

23 Viewed 23


                                    सतीश "बब्बा" 

          आकाश में घिरे बादलों के बीच सूर्य का कोई अता - पता नहीं था। एक जोरदार बिजली कौंधने से, एक जोरदार धमाके की तरह गर्जना से सुनीति का दिल काँप उठा। और मन में ख्याल आया कि, जाने वो कैसे होंगे! 
        अभी तो तीन ही दिन हुए थे, सुनीति को मायके आए हुए। वह सूरज से झगड़ा करके आई थी। वह सूरज के समझाने पर भी कि, 'अम्मा - बापू घर पर नहीं हैं।' अपने छोटे से इकलौता बेटा को भी साथ ले आई थी। 
           लड़ाई में वह चाहती थी कि, सूरज अपने अम्मा - बापू से दूरी बनाये और सूरज यह नहीं कर पा रहा था। खाना सुनीति बनाती, लेकिन सूरज माँ के यहाँ भी जरूर खा लेता था। 
           मायके आकर अब सूरज की याद सताने लगी। जाने वही कपड़े पहने होंगे या फिर...! अनजाने खयालों में वह डूबती - उतराती रही। 
           अपने मम्मी - पापा को अपनी बहू के प्रति स्नेह देखकर सुनीति को अपने सास - ससुर याद आने लगे थे। 
           सुनीति की सहेलियों ने जो कहा सिखाया था कि, "ससुराल में जब - तक सास - ससुर रहते हैं, तब तक आजादी नहीं होती, बल्कि बेड़ियों से जकड़ी भरपूर जेल होती है ससुराल! बहू के पक्के दुश्मन सास - ससुर होते हैं!" 
           चारपाई में पड़ी सुनीति को अपने ससुराल की याद आने लगी, असली आजादी तो सास और ससुर के रहते ही है। उसके सामने मुँह दिखाई से लेकर, अब - तक की याद आने लगी, उस दिन सुनीति के सिर में दर्द था। सुनीति ने दुश्मन मानकर सास से नहीं बताया। सूरज घर में था नहीं। 
        सुनीति को याद आया, 'उसे उदास देखकर सास ने पूछा था कि, "क्या बात है बहूरानी, आज उदास क्यों हो?" 
          मैंने कहा था, "कुछ नहीं है!" 
          सास की बूढ़ी आँखें, अनुभवी दिल ताड़ गया कि, कुछ तो है! उसने कहा था कि, "जाओ, आराम करो!" 
           कुछ राहत मिली, मैं अपने कमरे में बिस्तर पर पड़ गई थी। अब दर्द सहन के बाहर हो रहा था। कुछ देर बाद, मेरी माँ की तरह सूरज की माँ यानी मेरी सास मेरे कमरे में आई। मेरा बदन छुआ और ससुर जी को चिल्लाया, "जल्दी करो सूरज के बापू, बहू को तो बुखार है! " 
           घर का सारा काम छोड़ दिया गया। और ससुर जी, मेरे बाप की तरह ससुर ने जल्दी से मेरा बदन छुआ और जल्दी से बाहर की ओर दौड़ पड़े, उनके बूढ़े बदन में जैसे पंख लग गए हों। 
           बस कुछ ही देर में एक बंद चार पहिया गाड़ी दरवाजे पर आकर खड़ी हुई, ससुर जी उसे किराया पर लाए थे। 
          सास ने मेरे कपड़े, मेरी मम्मी की तरह ही सही किए और मुझे पकड़कर ले चली थी। ससुर ने कहा, "मैं कनिया में उठाकर बैठा आऊँ?" 
          मैंने मना किया था, "नहीं मैं चल लूँगी!" 
          सास ने कहा था कि, "तुम बाप हो सूरज के बापू तो, मैं भी महतारी हूँ, अपनी बेटी को सँभाल सकती हूँ!" 
           उस दिन अस्पताल में, मुझे मेरे सास - ससुर मेरे मम्मी - पापा से भी अधिक प्यार करने वाले लग रहे थे। लेकिन मैं, तब भी उनको अपना नहीं सकी और वह बूढ़े अपने हाथ से रोटी बना रहे हैं। 
           मैं अच्छी हो गई। सोचा वह दिखावा होगा। फिर एक दिन सूरज ने मुझे डाँट दिया था। सास ने सुन लिया था। मैं रो रही थी। 
         एक दिन सूरज के अम्मा - बापू ने सूरज को बुलाया था और मैं पापिन चुपके से सुनने लगी। मेरे सास - ससुर कह रहे थे कि, "खबरदार हमारी बहू को कभी डाँटा तो, उसके एक भी आँसू नहीं गिरने चाहिए, वरना हमसे बुरा कोई नहीं होगा!" 
           मैंने इसे भी लापरवाही से अनसुना कर दिया था। 
           मैंने डिलवरी भी मायके में करवाया था। सास पर भरोसा क्यों करती। 
           पोते को जितना प्यार मेरे सास - ससुर कर रहे थे। कोई कर ही नहीं सकता। अगर पोता कोई नुकसान कर देता तो दादा दादी उसे अपनी छाती से चिपका लेते हैं। आज दादा - दादी को रटता, मुन्ने की तबियत ठीक नहीं है। 
           आज मायके में अपने - आपको पराई सी महसूस कर रही है। ऐसा व्यवहार हो रहा है जैसे, कोई मेहमान हूँ। उसका किसी वस्तु पर अधिकार नहीं है। सिर्फ रहो - खाओ जो बने घर में!" 
           बादलों की गड़गड़ाहट और तेज बारिश से सुनीति को फिर लौटना पड़ा, वर्तमान में! मायके के कमरे में पड़ी सुनीति और पास पड़ा बेटा, दादी की याद करके, "अम्मा - अम्मा" की रट लगा रहा था। वह दादी को अम्मा ही कहता है। 
            छत से गिरती पानी की तेज धार से वातावरण सुनीति के लिए भयावह हो रहा था। 
           तभी उसने फोन उठाया और सूरज की माँ यानी अपनी सास को फोन लगा दिया। उधर से आवाज आई, "हलो!" सुनीति के सास - ससुर अभी भी सूरज के मामा के घर श्राद्ध के निमंत्रण में थे। पानी बरसने की वजह से वह लौट नहीं सके थे। 
          सुनीति रो पड़ी, "म - म म मम्मी, कहाँ हैं? पानी बहुत बरस रहा है, आप भीगना नहीं, न ही पापा को भीगने देना!" 
          सुनीति की सास बोली, "हमारे पोते का ख्याल रखना, बाहर न निकलने देना!" 
          सुनीति फफककर रो पड़ी और कहा, "मुझे माफ कर देना मम्मी, मैं सूरज से झगड़ा करके मायके आ गयी हूँ, और मुन्ने को बुखार है वह आपकी रट लगा रहा है!" 
          इतना सुनते ही सुनीति की सास ने कहा, "हमें आ जाने देती, हम उसे बताते, दुष्ट को सजा देते, तुमको नहीं जाना चाहिए था। देख मैं तेरे ससुर से बताती हूँ!" उधर से फोन काट दिया गया। 
           सुनीति का दिल तेजी से धड़कना शुरू कर दिया था। उसने तुरंत सूरज को फोन लगाया। सूरज मानो इंतजार में था। उसने झट फोन उठा लिया और कहा, "क्या है जानेमन?" 
           सुनीति रो पड़ी और कहा, "बाहर मत निकलना, भीगना नहीं!" 
           सूरज ने चुटकी ली, "सुनीति जी, तुम्हें क्या करना है, मैं भीगूँ या नहीं भीगूँ, मेरी मर्जी!" 
           सुनीति ने पावर से कहा, "खबरदार, जो भीगे तो, मैं आ रही हूँ!" 
           सुनीत तड़प रही थी। कि, एक घण्टा के अंदर ही, थोड़ा सा दिन बचा था कि, एक बोलैरो आकर बाहर दरवाजे पर रुकी और जोर - जोर से हार्न बजने लगा। पानी अभी भी बरस रहा था। 
           सुनीति ने बाहर झाँका। सुनीति के माँ - बाप खातिरदारी में थे। पहचान कर सुनीति उछल पड़ी। और मुन्ने को गोद में उठाकर फिर बड़ों के लिहाज में सहज होकर, जाकर सास - ससुर के पाँव छुए। 
           ससुर ने जैसे सुना, वैसे किराया से बोलैरो लेकर आ गया था। 
           दादी ने तुरंत पोते को लेकर अपनी छाती से चिपका लिया। मुन्ने ने कहा, "अम्मा!" और वह चिपक गया जैसे, पेंड़ से बेल चिपक जाती है। कुछ ही देर में मुन्ने का बुखार उतरने लगा था। 
           सुनीति के ससुर ने, सुनीति के पिता से कहा, "हम बहू को लेने आए हैं!" 
           सुनीति के मम्मी पापा ने कहा, "पानी बरस रहा है, खाना खा लीजिए, फिर सुबह निकल लीजिएगा!" 
           सुनीति के सास - ससुर ने शालीनता से कहा, "किराया की बोलैरो है, अब जाने की इजाजत दीजिए!" 
           सुनीति पहले से ही बोलैरो में बैठ चुकी थी। सुनीति को तीन दिन, तीन युग के बराबर लग रहे थे। 
           बारिश में ससुर के साथ सुनीति को आया देखकर, सूरज चौंधिया गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि, कैसे, क्या हुआ! 
           मुन्ना अभी भी दादी - अम्मा की गोद में से सभी को टुकुर - टुकुर निहार रहा था। 
           सुनीति सूरज के बगल से निकलते हुए धीरे से कहा, "अंदर चलो अभी बताती हूँ!" 
           सूरज जब सुनीति के पास गया तो वह लिपटकर कहा, "कैसे पति हो, पत्नी को अधिकार से रोका नहीं!" 
          "तो तुम असलियत से अनजान ही रहती!" सूरज ने उसे चिपटाते हुए कहा! 
           सुनीति रो पड़ी और कहा, "माफ कर दो!" 
           सूरज ने सुनीति को दिल में चिपकाकर कहा, "हमने तो पहले ही माफ कर दिया था। अब तुम हमें माफ कर दो!" 
           अब सूरज को उसके अम्मा - बापू डाँटना शुरू कर दिया था, सूरज चुपचाप सुन रहा था। और सुनीति की आँखों में खुशी के आँसू छलक रहे थे, जिन्हें उसने नहीं पोछा। 
           अब सुनीति अपनी ससुराल को अपना घर मान लिया था। और इसी में सुख है, जान लिया था। 

                                        सतीश "बब्बा" 

44
Articles
गरीबा
0.0
सतीश बब्बा की यह पुस्तक अपने - आप में अनूठी है, ऐसा लगता है जैसे हमारी ही कहानी लिखी गई है। एक बार शुरू कर दिया पढ़ना तो फिर अंत तक फिर बंद ही नहीं किया जाता है।
1

संस्मरण। "गरीबा"

23 September 2022
3
0
0

संस्मरण। "शर्मसार होती इंसानियत " सतीश "बब्बा" आज चेहरे में झुर्रियां, सिर के बाल सफेद, मैले - कुचैले कपड़ों को पानी में साफ करने की को

2

लघुकथा। "मतलबी और मैं"

23 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "मतलबी और मैं" &nbs

3

लघुकथा। "भतीजी"

23 September 2022
0
1
0

&n

4

लघुकथा। "बेटी"

23 September 2022
0
0
0

लघुकथा। ष्बेटीष् सतीश ष्बब्बाष् &

5

कहानी। "दुश्मन"

23 September 2022
0
1
0

&n

6

लघुकथा। "खोज"

23 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "खोज"

7

लघुकथा। "विधवा बहू"

23 September 2022
0
1
0

लघुकथा। "विधवा बहू" &

8

लघुकथा। चंदा

23 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "चंदा" सतीश "बब्बा"&nbsp

9

लघुकथा। "कुलीन"

23 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "कुलीन" सतीश "बब्बा" &nbs

10

लघुकथा। "पिता"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "पिता" सतीश

11

लघुकथा। "भगवान की माया"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "भगवान की माया" &nb

12

लघुकथा। "आजादी"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "आजादी" सतीश "बब्बा"&nbs

13

लघुकथा। "हिंदू"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "हिंदू" सतीश "बब्बा"&nbs

14

लघुकथा। "तलाश में"

24 September 2022
0
0
0

&n

15

लघुकथा। "मदद"

24 September 2022
0
0
0

&n

16

लघुकथा। "धर्मात्मा"

24 September 2022
0
0
0

&n

17

लघुकथा। "घण्टा"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "घण्टा" सतीश "बब्बा"&nbs

18

लघुकथा। "सहानुभूति"

24 September 2022
0
0
0

&n

19

लघुकथा। "भूख"

24 September 2022
0
1
0

&n

20

लघुकथा। "पैसा"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "पैसा" सतीश "बब्बा" &nbsp

21

लघुकथा। "इच्छापूर्ति"

24 September 2022
0
0
0

&n

22

लघुकथा। "खेत की मेंड़"

24 September 2022
0
0
0

&n

23

संस्मरण। "कबरा कुत्ता"

24 September 2022
0
0
0

संस्मरण। "कबरा कुत्ता" सतीश "बब्

24

लघुकथा। "अँधेरा"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "अंधेरा" सतीश "बब्बा"&nb

25

लघुकथा। "रद्दी"

24 September 2022
0
0
0

&n

26

लघुकथा। "रद्दी सामान"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "रद्दी सामान" &nbsp

27

लघुकथा। "फादर्स डे"

24 September 2022
0
0
0

सतीश "बब्बा" लघुकथा। "फादर्स डे"

28

लघुकथा। "याद रखना"

24 September 2022
0
0
0

&n

29

लघुकथा। "कल्याण"

24 September 2022
0
0
0

—frnso ;gka लघुकथा। कल्याण

30

लघुकथा। "बचपन"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "बचपन"

31

लघुकथा। "परिवार"

24 September 2022
0
0
0

&n

32

लघुकथा। "कलूटी"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "कलूटी" सतीश "बब्ब

33

लघुकथा। "सुख"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "सुख" सतीश "बब्बा"

34

लघुकथा। "देह"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "देह और प्रेम" &nbs

35

लघुकथा

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "अरब पति नहीं बनना" &nbsp

36

लघुकथा। "माँ का आँचल"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "माँ का आँचल" &nbsp

37

लघुकथा। "मंदिर में"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "मंदिर में" &

38

लघुकथा। "पैनी नजर"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "पैनी नजर" स

39

लघुकथा। "अब क्या करे"

24 September 2022
0
0
0

उसे बहुत आशाएं थी, भगवान शिव से, राम, हनुमान से, अपने बेटों और खुद से! मित्रों में पैसे वाले और गरीब भी थे। मित्रों में मित्र उसकी अपनी पत्नी थी।

40

लघुकथा। "धनीराम"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "धनीराम" सतीश "बब्

41

प्रधान पति

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "प्रधानपति" &

42

लघुकथा। "बेइमानी के धंधे"

24 September 2022
0
0
0

लघुकथा। "बेइमानी के धंधे" &

43

लेखक परिचय

24 September 2022
0
0
0

विंध्य क्षेत्र में जन्मा एक उच्च कुलीन ब्राह्मण पड़रहा मिसिर के घर लेखकीय नाम - सतीश "बब्बा" पूरा नाम - सतीश चन्द्र मिश्र, पिता - स्व. श्री जागेश्वर प्रसाद मिश्र, माता - श्रीमती मुन्नी देवी मिश्रा, जि

44

लघुकथा। "मड़ियार सिंह"

2 October 2022
0
0
0

लघुकथा। "मड़ियार सिंह" सतीश "बब्बा" आज मड़ियार

---