सतीश "बब्बा"
उस दिन के अपमान के बाद श्याम ने अब कभी भी कर्ज नहीं लेने की कसम खाई थी।
आज जब अचानक पत्नी बीमार हुई तो, 'मरता क्या न करता' की स्थिति में जुडा़वन से भी कर्ज उसे लेना पडा़!
श्याम के देह में ईमानदारी कूट - कूट कर भरी थी।
महीनों के मशक्कत के बाद श्याम की पत्नी कुछ ठीक हुई, तो कर्जदारों के तकादे , बीमारी से भी ज्यादा श्याम को पीडा़ देने लगे।
सभी की गिद्ध दृष्टि तिराहे की, सड़क वाली जमीन में थी। आखिर दबाव में श्याम ने मन बना लिया था कि, कर्ज का पाप उतारने के लिए वह जमीन का टुकडा़ जुडा़वन को दे देगा।
वह ऐसा करने के लिए जुडा़वन को हाँ कहने जाने ही वाला था कि, एक अति गरीब , दरिद्र दलित दुखीराम आ गया और कहने लगा, "श्याम भाई, तुम वह जमीन मत बेंचना ! तिराहे में कोई धंधा करके तुम्हारी औलाद, तुम्हारे बेटे , जीवन चला सकते हैं। और तुम गाँव मत छोड़ना मेरे भाई , मेरे पैसे धीरे - धीरे चुका देना!"
श्याम की आँखों में आँसू भर आए और श्याम ने दुखीराम से कहा, "यह उपकार मैं मरते दम तक नहीं भूल सकता!"
और अपने बेटे से "याद रखना" कहकर चल दिया, जुडा़वन का कर्ज उतारने!