—frnso ;gka लघुकथा। कल्याण
सतीश बब्बा
उस दिन भीमसेनी एकादशी थी। सूर्य मृगशिरा नक्षत्र में होने के कारण आग उगल रहा था। इस भीषण गर्मी में तमाम घरू परेशानियों, बीमारियों से जूझता शंकर पंडित शिवदर्शन के घर गया। सभी जानते थे कि 9 बजते ही सूर्य आग उगलना शुरू कर देगा।
शंकर ने पंडित शिवदर्शन से समयाएं बताई! शंकर की गरीबी और समयाओं से गाँव का कौन शख्स नहीं वाकिफ था।
शिवदर्शन ने मौके का फायदा उठाया और उसे निर्जला भीमसेनी एकादशी व्रत के लिए कहा और फल दूध दान की सलाह दी!
शंकर दान किसे करता अपने पुरोहित शिवदर्शन को फल और दूध दान में दे दिया। और स्वयं निराहार व्रत करके कयाण के लिए जलता रहा। ताकि- शायद गरीबी और समयाएं दूर हो जाएँ!
व्रत तो शिवदर्शन ने भी रखा था। वे शंकर के ही फलों और दूध को छककर भरपेट खाया और कूलर में सो गये थे।
इधर कयाण के चक्कर में शंकर जलता रहा । उसकी ऐसी - तैसी हो गयी और गरीबी में आटा गीला दवा के लिए हजार रुपये और कर्ज लेना पडा़ उसे!