लघुकथा। "कुलीन"
सतीश "बब्बा"
सुमन के मैसेंजर, वाट्साप और फेसबुक के मैसेज के जवाब - सवाल से तथा उसके शालीन बिचारों और उसकी लिखी कविताएं, कवि रामसुजान को भा गई थी।
कवि रामसुजान भी उच्च कुलीन ब्राह्मण था। उसने, सुमन से, सुमन के निवास की जानकारी लिया और एक दिन रामसुजान सुमन के घर पहुँच गया।
सुमन के मम्मी - पापा ने औपचारिकता के बाद परिचय पूछा, और फिर आने का उद्देश्य जानना चाहा।
कवि रामसुजान ने आने का मकसद सुमन को अपनी बहू बनाने का बताया कि, "सुमन पढ़ाई, उमर और गुण से मेरे बेटे सुमेध के अनुरूप है!"
ब्राह्मण समाज, विशेषकर विंध्य क्षेत्र के ब्राह्मणों में लड़की का बाप या लड़की के और रिश्तेदार रिश्ता ढूँढ़ते हैं, लड़के का बाप नहीं! लड़के का बाप जितने नखरे करेगा, उतना ही अच्छा उसे समझा जाता है। और जो लम्बी रकम दहेज में माँगता है, वह कुलीन समझा जाता है।
रामसुजान के प्रस्ताव से सुमन के पिता भड़क गए। और रामसुजान को बुरा - भला तक कह डाला।
सुमन जानती थी कि, रामसुजान के कुलीन होने में कोई शक नहीं है। रामसुजान के कुल में एक भी दाग नहीं है। फिर भी माता - पिता की व लड़की होने की मर्यादा को बनाए रखने के लिये सुमन चुप रही।
आखिर में रामसुजान लौट आया।
सुमन पोस्टग्रैजुएट थी। और सुमेध भी पोस्टग्रैजुएट था। रामसुजान का बेटा सुमेध बहुत मेहनती था। आरक्षण के कारण सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती, इसीलिए खुद का, निजी धंधा करके अच्छा जीवन यापन कर रहा था।
सुमन के पिता ने, सुमन की शादी एक कम पढ़े लिखे लड़के से काफी दहेज देकर कर दिया। लड़का गँजेड़ी है और सुमन को परेशान करता रहता है।
सुमन के बिचार उस लड़के के बिचारों से मेल नहीं खाते हैं।
सुमन के साथ, सुमन के बूढ़े माता - पिता भी रोते हैं। और सुमन के घर का खर्चा भी वही उठा रहे हैं।
आखिर कब तक वह बूढ़े कंधे भार उठा पाएंगे। यह तो भगवान ही जाने। यही सोचकर सुमन सूखती जा रही है।
सतीश "बब्बा"