shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

सतीश "बब्बा"'s Diary

सतीश "बब्बा"

4 Chapters
0 Person has added to Library
0 Readers
Free

 

0.0(0)

Other Diary books

empty-viewNo Book Found

Parts

1

कुछ तो है

24 September 2022
0
1
0

सतीश "बब्ब" कुछ तो जादू है, उसकी बातों में, कुछ तो जादू है, उसकी बोली में! पता नहीं क्यों, अच्छा लगता है, हंसने को मन

2

कविता। "अंतरिक्ष"

24 September 2022
0
0
0

सतीश "बब्बा" इस अंतरिक्ष का, खेल निराला है, कभी गोरा कभी काला है यह हरदम रहने वाला है! कभी बा

3

हम बहुत थके थे।

26 September 2022
0
0
0

उस दिन जब उसकी बीमारी में पैसे लेकर सतना के लिए चला था तो, दोपहर के बारह बजे थे, सुर्य भगवान आग उगल रहे थे। और हम बहुत थके थे। लेकिन जैसे ही मैं धारकुंडी पहुँचा वहाँ के महा

4

हमारे गाँव का खोता भाईचारा।

2 October 2022
0
0
0

जहाँ कभी प्रेम की नदिया बहती थी। जहाँ पूरा गाँव एक परिवार की तरह रहता था। नित उत्सव, पुराण, कीर्तन और लोकगीत हुआ करते थे, आज गाँव में शराब और जातिवाद, नेतागिरी तथा लालच ने अब परिवार बिखर गए हैं। शराब

---