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सतीश "बब्ब" कुछ तो जादू है, उसकी बातों में, कुछ तो जादू है, उसकी बोली में! पता नहीं क्यों, अच्छा लगता है, हंसने को मन
सतीश "बब्बा" इस अंतरिक्ष का, खेल निराला है, कभी गोरा कभी काला है यह हरदम रहने वाला है! कभी बा
उस दिन जब उसकी बीमारी में पैसे लेकर सतना के लिए चला था तो, दोपहर के बारह बजे थे, सुर्य भगवान आग उगल रहे थे। और हम बहुत थके थे। लेकिन जैसे ही मैं धारकुंडी पहुँचा वहाँ के महा
जहाँ कभी प्रेम की नदिया बहती थी। जहाँ पूरा गाँव एक परिवार की तरह रहता था। नित उत्सव, पुराण, कीर्तन और लोकगीत हुआ करते थे, आज गाँव में शराब और जातिवाद, नेतागिरी तथा लालच ने अब परिवार बिखर गए हैं। शराब