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कविता। "अंतरिक्ष"

24 September 2022

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                     सतीश "बब्बा" 

इस अंतरिक्ष का, 
खेल निराला है, 
कभी गोरा कभी काला है  
यह हरदम रहने वाला है! 

कभी बादलों से आच्छादित, 
मन को बहुत लुभाता है, 
किसानों के मन में हरदम, 
कभी खुशी, कभी भय देता है! 

कभी रात अंधेरे में, 
पूनम को चाँद भी रखता है, 
प्रेमी युगल को बहुत भाता है, 
धरती में अमृत बरसता है! 

अमावस की रात में, 
अंतरिक्ष डरावना लगता है, 
अनगिनत तारों में, 
कालिमा भयावह लगती है! 

कभी धूल - धूसरित होकर, 
आँधी - बवंडर चलाता है, 
कभी शीतल, मंद, सुगंधित, 
यह अंतरिक्ष पवन चलाता है! 

                      सतीश "बब्बा" 
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कुछ तो है

24 September 2022
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सतीश "बब्ब" कुछ तो जादू है, उसकी बातों में, कुछ तो जादू है, उसकी बोली में! पता नहीं क्यों, अच्छा लगता है, हंसने को मन

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कविता। "अंतरिक्ष"

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सतीश "बब्बा" इस अंतरिक्ष का, खेल निराला है, कभी गोरा कभी काला है यह हरदम रहने वाला है! कभी बा

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26 September 2022
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