सतीश "बब्बा"
इस अंतरिक्ष का,
खेल निराला है,
कभी गोरा कभी काला है
यह हरदम रहने वाला है!
कभी बादलों से आच्छादित,
मन को बहुत लुभाता है,
किसानों के मन में हरदम,
कभी खुशी, कभी भय देता है!
कभी रात अंधेरे में,
पूनम को चाँद भी रखता है,
प्रेमी युगल को बहुत भाता है,
धरती में अमृत बरसता है!
अमावस की रात में,
अंतरिक्ष डरावना लगता है,
अनगिनत तारों में,
कालिमा भयावह लगती है!
कभी धूल - धूसरित होकर,
आँधी - बवंडर चलाता है,
कभी शीतल, मंद, सुगंधित,
यह अंतरिक्ष पवन चलाता है!
सतीश "बब्बा"