सतीश "बब्बा"
मैं लेखक / पत्रकार / साहित्यकार
नन्नू के कक्का
यह सतीश "बब्बा" ( सतीश चन्द्र मिश्र ) द्वारा लिखित पुस्तक एक बार शुरू कर , पूरी पढ़ने का मन करता है , ऐसा लगता है कि, हमारी -अपनी कहानी इसमें लिखी गई है । यह पुस्तक पूर्ण रूप से काल्पनिक है । अगर किसी के जीवन से मेल खाती है तो यह महज एक संयोग मात्र ह
नन्नू के कक्का
यह सतीश "बब्बा" ( सतीश चन्द्र मिश्र ) द्वारा लिखित पुस्तक एक बार शुरू कर , पूरी पढ़ने का मन करता है , ऐसा लगता है कि, हमारी -अपनी कहानी इसमें लिखी गई है । यह पुस्तक पूर्ण रूप से काल्पनिक है । अगर किसी के जीवन से मेल खाती है तो यह महज एक संयोग मात्र ह
गरीबा
सतीश बब्बा की यह पुस्तक अपने - आप में अनूठी है, ऐसा लगता है जैसे हमारी ही कहानी लिखी गई है। एक बार शुरू कर दिया पढ़ना तो फिर अंत तक फिर बंद ही नहीं किया जाता है।
गरीबा
सतीश बब्बा की यह पुस्तक अपने - आप में अनूठी है, ऐसा लगता है जैसे हमारी ही कहानी लिखी गई है। एक बार शुरू कर दिया पढ़ना तो फिर अंत तक फिर बंद ही नहीं किया जाता है।