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हम बहुत थके थे।

26 September 2022

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        उस दिन जब उसकी बीमारी में पैसे लेकर सतना के लिए चला था तो, दोपहर के बारह बजे थे, सुर्य भगवान आग उगल रहे थे। और हम बहुत थके थे। लेकिन जैसे ही मैं धारकुंडी पहुँचा वहाँ के महाराज, स्वामी जी की कृपा और भगवान गैवीनाथ की विशेष कृपा कि, मेरे ऊपर बादल हल्की फुहार के साथ चलने लगे। और सतना तक विरला तक ऐसा रहा फिर, सब पानी और बादल गायब, हम बहुत थके थे सभी। मैं उस दिन के उपकार को कैसे भूल सकता हूँ। जय स्वामी जी, जय गैवीनाथ और जय महाकाल! 
                 सतीश "बब्बा" 
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कुछ तो है

24 September 2022
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सतीश "बब्ब" कुछ तो जादू है, उसकी बातों में, कुछ तो जादू है, उसकी बोली में! पता नहीं क्यों, अच्छा लगता है, हंसने को मन

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कविता। "अंतरिक्ष"

24 September 2022
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सतीश "बब्बा" इस अंतरिक्ष का, खेल निराला है, कभी गोरा कभी काला है यह हरदम रहने वाला है! कभी बा

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हम बहुत थके थे।

26 September 2022
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उस दिन जब उसकी बीमारी में पैसे लेकर सतना के लिए चला था तो, दोपहर के बारह बजे थे, सुर्य भगवान आग उगल रहे थे। और हम बहुत थके थे। लेकिन जैसे ही मैं धारकुंडी पहुँचा वहाँ के महा

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हमारे गाँव का खोता भाईचारा।

2 October 2022
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जहाँ कभी प्रेम की नदिया बहती थी। जहाँ पूरा गाँव एक परिवार की तरह रहता था। नित उत्सव, पुराण, कीर्तन और लोकगीत हुआ करते थे, आज गाँव में शराब और जातिवाद, नेतागिरी तथा लालच ने अब परिवार बिखर गए हैं। शराब

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