उस दिन जब उसकी बीमारी में पैसे लेकर सतना के लिए चला था तो, दोपहर के बारह बजे थे, सुर्य भगवान आग उगल रहे थे। और हम बहुत थके थे। लेकिन जैसे ही मैं धारकुंडी पहुँचा वहाँ के महाराज, स्वामी जी की कृपा और भगवान गैवीनाथ की विशेष कृपा कि, मेरे ऊपर बादल हल्की फुहार के साथ चलने लगे। और सतना तक विरला तक ऐसा रहा फिर, सब पानी और बादल गायब, हम बहुत थके थे सभी। मैं उस दिन के उपकार को कैसे भूल सकता हूँ। जय स्वामी जी, जय गैवीनाथ और जय महाकाल!
सतीश "बब्बा"