लघुकथा। "घण्टा"
सतीश "बब्बा"
नन्हा निशु कक्षा में बैठे कुछ सोच रहा था। बारंबार उसकी बेचैनी झलक रही थी, जो किसी से छिपी नहीं थी।
आखिर एक मास्टरनी ने पूछ लिया, "निशु क्या बात है, तबियत तो ठीक है न? तुम क्या सोच रहे हो?"
निशु ने बिना किसी देरी के, झट से उतर दिया, "मैम, मेरे दादा जी कहा करते हैं कि, 'पहले से नमक की बोरी का वजन कम हो गया, अनाज की भर्ती कम हो गई। और दूध भी कम हो गया। सब कुछ घट रहा है। आदमी की उम्र घट गई, लम्बाई घट गई!"
मास्टरनी ने कहा, "तो फिर इसमें तुम्हें क्यों दिक्कत है निशु !"
निशु ने बहुत ही भोलापन और दुखी मन से कहा, "तो फिर मैम, यह घण्टा क्यों नहीं कम हो रहा? मुझे मम्मा की याद आ रही है!"
निशु के उत्तर से वहाँ उपस्थित सभी टीचर्स हँसी नहीं रोक पाए, लेकिन निशु अब भी गंभीर था।
सतीश "बब्बा"