सतीश "बब्बा"
कुछ दिन, कुछ बातें और कुछ रातें जीवन की अमिट छाप हो जाती हैं। वह भुलाने से भी नहीं भूलती हैं।
भला मैं उस रात को कैसे भूल सकता हूँ। जीवन साथी का आई. सी. यू. में जीवन और मौत से संघर्ष करना, कितना कष्टदायक था, मेरे लिए, मैं लिख नहीं पाऊँगा।
कुछ लोग तो इस दुखद घड़ी में मेरे साथ खड़े थे, बिना स्वार्थ हर मदद के लिए तैयार खड़े थे। और कुछ लोगों को मेरी जायदाद दिखाई दे रही थी। वे चंद रुपए देकर, हर - हाल में मुझसे सौदा तय कर लेना चाहते थे।
मैं बड़ा होने के कारण, अपनी परेशानी, अपने परिवार पर जाहिर नहीं होने देना चाहता था।
तभी मेरे बेटे और बहू ने मेरे सिर पर हाथ फेरे और एक स्वर से कहा, "पापा, घबड़ाना नहीं! आप जो भी निर्णय लेंगे, हम सभी आपके साथ हैं। मम्मी को हर - हालत में बचाना है!"
यह देख, सुनकर मेरी परेशानी आधी हो गई। और एक दृढ़ संकल्प लेकर मैं, डाक्टर के केबिन की ओर चला गया।
परिवार के एकता का जादू चला और पत्नी की हालत में सुधार होने लगा।
सतीश "बब्बा"