लघुकथा। "पैसा"
सतीश "बब्बा"
उस दिन वह फेसबुक पर मिली थी। दोस्त की बहन बताया था। और मैंने बहन ही समझा था।
चैट शुरू हुआ था, मैसेंजर में और फिर वाट्साप में। प्यार मुहब्बत की बातें हुई, फिर पैसों की मांग हुई।
उसने आग्रह से कहा, मोबाइल के लिए १००० भेज दीजिए!"
तरह - तरह की बातें होती रही। जब पैसा नहीं दिया, तो हजारों गालियाँ दी गई और फिर दोस्ती बंद कर दी गई।
उसके लिए पैसा ही जीवाधार हो गया। एक अच्छे दोस्त को पैसा के खातिर खो दिया।
सतीश "बब्बा"