सतीश "बब्बा"
आज भी गरीब, गरीबी और भूखों की कमी नहीं है। भूख और गरीबी का बहुत ही गहरा नाता है।
उस दिन बनवासी आश्रम मैं भी पहुँच गया था। क्योंकि बारह बजे दोपहर में वहाँ रोज प्रसाद के रूप में खाना खाने को दिया जाता है। फिर आज गुरू पूर्णिमा के कारण विशेष महत्व था।
प्रसाद की इच्छा बलवती हुई और समय था सो पहुँच गया।
"पहले साधुओं की पंगत होगी!" ऐसा मुझे बताया गया था।
मुझे यहाँ पता चला और पुष्टि हुई कि दाढ़ी बढ़ाकर लाल वस्त्र पहनने से लोग साधु महात्मा हो जाते हैं।
एक गरीब वृद्ध जिसका भूख से बुरा हाल हो रहा था। वह बार - बार दरवाजे तक जाता, वहाँ के कार्यकर्ता और पुलिस के सिपाही उसे भगा देते थे।
मैंने एक सिपाही से पूछा, जो कार्यकर्ताओं की हिफाजत में था कि, "सर, इसे क्यों नहीं घुसने देते हैं?"
उस सिपाही ने बताया, "पहले बाबा लोगों की पंगत होगी और जो बैच लगाए होगा, आश्रम का कार्यकर्ता वही जाने पाएगा बाँकी कोई नहीं!"
मैंने कहा, "यह गरीब भूखा है!"
उस सिपाही ने गर्मी से कहा, "भूखा है तो थोड़ी देर सब्र करे न!"
तभी लम्बी दाढ़ी, बड़े - बड़े बालों के साथ लाल वस्त्र पहने एक साधु आया। शायद उसे सभी लोग जानते थे। और मैं भी उसे अच्छी तरह से पहचानता था। और पुलिस वाले तो उसे अच्छी तरह से जानते हैं।
वह भूषना लोध था। जिसके 8 मर्डर केस पंजीकृत थे। दो केस में सजा भी मिल चुकी है। हाईकोर्ट में अपील से छूटा है। और अभी भी करीब 40 केस लंबित चल रहे हैं, डकैती आदि के!
अब राजनीति में काम करता है।
भूषना को देखते ही सभी ने प्रणाम किया और आदर से अंदर ले गए।
बात मेरे कुछ समझ में आई, कुछ नहीं आई!
अब मैं वहाँ अधिक देर तक रुक नहीं सका!