लघुकथा। "बेइमानी के धंधे"
सतीश "बब्बा"
उस दिन झरोखा सिंह ने बड़ी हमदर्दी दिखाई थी। जब दद्दी ने, रमुआ के ऊपर कर्जा वापसी का दबाव बनाया था और पैसा दे भी दिया था।
फिर रमुआ की पत्नी बीमार पड़ी, तब भी झरोखा सिंह ने पूरी मदद की थी। इसी तरह की हमदर्दी से सीधे - सादे, ईमानदार रमुआ का दिल, झरोखा सिंह जीतने में कामयाब हो गया था।
रमुआ को क्या पता था कि, फुट में बिकनेवाली उसकी, उसके घर के पास वाली जमीन में झरोखा सिंह की निगाहे टिकी हैं।
अब रमुआ को पैसे लौटा पाना संभव नहीं था। मौका देख झरोखा ने आधे कीमत पर उसकी जमीन का सौदा करना चाहा।
अब रमुआ समझ गया था, झरोखा सिंह का मतलब!
झरोखा सिंह, गाँव वालों को भी पट्टी पढ़ा चुका था। इससे किसी ने भी कीमत नहीं बढ़ाई।
हार कर आखिर में, रमुआ को अपनी जमीन आधे दाम पर ही, झरोखा सिंह को देना पड़ा।
आखिर और गाँव के बड़े खिलाड़ी भी, झरोखा के आगे हाथ मलते और पछताते रह गए।
रमुआ ईमानदारी में, विश्वास में, गरीबी, जिल्लत झेलता रहा और झरोखा सिंह बेईमानी के धंधे में भी मजे कर रहा है।
यह ग्रामीण, अशिक्षित लोगों के लिए एक अभिशाप जो है!
सतीश "बब्बा"