लघुकथा। "बचपन"
सतीश "बब्बा"
वह पूरी तन्मयता से कोल्ड ड्रिंक के वाटल का मजबूत लेबल फाड़ने में जुटा था और फाड़ने में कामयाबी पाकर बहुत खुश हो रहा था।
वहीं पास में अपने - अपने अस्तित्व के लिए, अपनी जायदाद वृद्धि के लिए दो पूर्ण विकसित मानव ऐसे लड़ रहे थे जैसे, यह धरती अब उनकी ही रहने वाली है।
फिर भी वह डेढ़ साल का बचपन, उनकी लड़ाई से, बिल्कुल ही प्रतिक्रिया विहीन था।
मुझे वह छोटा बालक प्रेरणा दे रहा था। और मैं ईश्वर से फिर से बचपन लौटाने की प्रार्थना करने लगा। यह जानते हुए कि अब इस तन में ऐसा संभव नहीं है।
सतीश "बब्बा"