सतीश "बब्बा"
आज रद्दी सामान खरीदने वाली गाड़ी फिर आई थी। सभी पुराने सामान वह खरीद रहे थे।
रघु काका भी बूढ़ा, अब किसी काम का ना था। रघु भी बिकना चाहता था। उसने अपने बेटे से कहा, "बेटा, क्या यह मुझे नहीं खरीद लेंगे? मैं भी तो पुराना सामान हूँ!"
तभी रघु के पोते ने रघु से लिपटकर कहा, "दादा जी, वह शहरों में होता होगा, बेटा बाप को अनाथालय में भेजते होंगे, बेंचते होंगे। मैं तुम्हारा पोता हूँ, भगवान से रोज तुम्हारी लम्बी उमर की कामना करता हूँ। आप तो हमारे देवता हैं, दरवाजे में, बैठक में बैठे रहने से हमारी शान बढ़ जाती है। खबरदार से, जो अब कभी ऐसा कहा तो!"
रघु के आँखों से आँसू बह चले और वह अपने पोते को अपनी छाती से चिपका लिया, जैसे वह अभी भी डेढ़ साल का बच्चा हो!