लघुकथा। "रद्दी सामान"
सतीश "बब्बा"
आज एक व्यापारी डग्गा गाड़ी में माइक लगाकर एनाउंस कर रहा था कि, "जला - कटा, रिटायर, रद्दी, पुराना सामान, पुरानी बैटरी, पुराना लोहा और प्लास्टिक, पुरानी कापियाँ, कार्टून आदि सब कुछ हम खरीद लेते हैं।
तभी एक 70 वर्षीय पुरुष और एक महिला उस गाड़ी के पास पहुँच गए और कहने लगे, "बेटा, हम भी रद्दी, पुराने सामान हैं। हमें भी खरीद लो और जो देना हो हमारे बेटे को दे देना!"
गाड़ी वाले ने दुत्कारते हुए कहा कि, "हम क्या करेंगे तुम्हें! तुम जाओ, जहाँ मरना हो मरो, तुम किस काम के!"
बूढ़ा गिड़गिड़ाकर डग्गा वाले के पैरों में गिर कर कहा, "भैया कुछ मत देना, फ्री में ले लो और बेंच लेना, हमने सुना है कि, कहीं आदमी भी बिक जाता है!"
गाड़ी वाले ने ढकेलते हुए कहा, "ओ, तो बच्चे और जवान खरीदे जाते हैं, तुम जैसो को क्या करेंगे, नाहक खाना - खर्चा का घर!"
मुँह बनाते हुए वह डग्गा को लेकर और आगे बढ़ गया।
उन दोनों बूढ़ों की आँखों में आँसू छलक आए और उनके मुंह से निकाला, "काश! हम मनुष्य नहीं होते!"
सतीश "बब्बा"