सतीश "बब्बा"
आओ भैया तुम्हें बताएं,
कहानी अपने गाँव की,
हन्नू, भभ्भल, भक्ऊ वाले,
पँवरिया बाबा के ठाँव की!
उत्तर में गुन्ता बहती थी,
निर्मल जल से लबरेज रहती थी,
ना समझो ने ऐसे काम किए,
सूख गई गुन्ता जीवन दायिनी थी!
दक्षिण में पर्वत दुधगर्जा,
हरा भरा रहता था हरदम,
गायें चरकर दूध देती थी,
शीतल पवन बहती थी हरदम!
और बताएं शिर गाँव का,
पूरब में बड़ा जंगल देशाह का,
जंगल बहुत घनघोर बड़ा था,
सुंदर औषधियों का वन था!
जंगल में बाघ, शेर, चीता रहते थे,
सभी जानवर मंगल करते थे,
दुधगर्जा तक घूमा करते थे,
नहीं किसी का नुकसान करते थे!
निर्दयियों ने जानवरों को मारा,
पूरे जंगल के वृक्ष काट डारा,
पश्चिम का झरना सूख गया,
गाँव का भाईचारा बिगड़ गया!
पीकर वारुणी युवा मचल रहे,
पैसों के खातिर बापू को मार रहे,
अपना - पराया नहीं जान रहे,
यही कहानी मेरे गाँव की!!
सतीश "बब्बा"