सतीश "बब्बा"
छोटी चिड़िया प्यासी है,
नदिया भी अब सूखी है,
पेड़ों की कमी हो गई है,
चुन्नी की गगरी खाली है!
नदी में नरदा, नाली है,
सावन में नहीं हरियाली है,
तालाबों में नहीं पानी है,
सूरज से निकली आग है!
आसमान में बादल नहीं हैं,
पक्षी भी उड़ते नहीं हैं,
स्कूलों में बच्चे रोते हैं,
घर में दादा - दादी रोते हैं!
सावन में धूल उड़ती है,
नाग पंचमी भी सूनी है,
रक्षाबंधन की कम तैयारी है,
सूखे से सबका मन भारी है!
अब होगी नहीं रबी, ओन्हारी है,
बिटिया शादी लायक है,
गर्मी से बढ़ रही बीमारी है,
सूखे से रूखी, राखी है!!
सतीश "बब्बा"