सतीश "बब्बा"
शिव ने कहा मुझको,
मैं जान न पाया क्या हुआ मुझको,
है बहुत अचम्भित मन मेरा,
किस तरह शुक्रिया कहूँ तुमको!
कवि जीवन है बहुत कठिन,
ऊपर हंसता रोता भीतर है,
सबके बीच में रहकर भी,
अकेला अपने को महसूस करता है!
इतना खुद्दार दिल कवि का है,
सब कहते पागलों की महफिल,
नहीं किसी से वैर होता है,
कवि होता है कोमल दिल!
एकदम सच लिखता है,
अभाव में जीता - मरता है,
सबके बीच भी अलग रहता है,
इस पर बच्चा भी हंसता है!
कवि होना ही अलग बात है,
बात सदा कहता, लिखता खास है,
नहीं किसी का अहित करता है,
गरीबी में भी कवि जीता है!!
सतीश "बब्बा"