कविता। "माँ के बिन"
सतीश "बब्बा"
माँ तेरे बिन कैसे बीता,
यह मेरा अब तक का जीवन,
कितने दिन मैं रहूंगा जीता,
भटकता हूँ शहर, गाँव, वन!
तू होती तो रूठ भी जाता,
मनोवांछित भोजन करता,
दूसरों के लिए कैसे हूँ जीता,
यह जीवन, माँ तेरे बिन कैसे बीता!
जीता क्या हूँ, हर पल मरता हूँ,
मुँह गाता है, दिल रोता है,
जीवन लाश को जैसे, ढोता है,
माँ तेरे बिन कैसे बीता!
सांस चल रही यंत्रचालित सा हूँ,
दूसरों की मर्जी का करता हूँ,
ढोर चराकर नहीं हूँ रीता,
माँ तेरे बिन कैसे बीता!
ग्रीष्म बीता, बरखा बीता, जाड़ा बीता,
हर रोज दिन, महीना, साल वही है आता,
अभाव में ही सब दिन बीता,
माँ तेरे बिन कैसे बीता!!
सतीश "बब्बा"