कविता। "गीत"
सतीश "बब्बा"
यह गीत गुनगुनाना,
कृष्ण मय हो जाना,
ज्ञान की सीमा लाँघ जाना,
प्रेम बाँटकर भगवान बन जाना!
जब फिर महाभारत होना,
तब तुम गीता सुनाना,
अब घर - घर महाभारत है,
अब प्रेरक फिर न बनना!
अब घर - घर शकुनी हैं,
मामा को दोष मत देना,
कृष्ण मय जीवन बनाना,
यह गीत गुनगुनाना!
अश्वत्थामा जिंदा है,
धर्मराज का वजूद खत्म है,
तुम अर्जुन बनाना,
यह गीत गुनगुनाना!
बिखरे परिवारों में अब,
माहिल, शकुनी का काम नहीं है,
प्रेम को पड़ेगा फिर जगाना,
यह गीत गुनगुनाना!!
सतीश "बब्बा"