सतीश "बब्बा"
जबसे आया इस दुनिया में,
चलता ही रहा, चलता ही रहा,
जब - जब फँसा बीच भँवर में,
उलझता और सुलझता ही रहा!
लड़ लड़ कर तूफानों से,
चक्रवात, रोग, औजारों से,
उजाला और अंधेरा से,
लड़ता ही रहा शैतानों से!
फिर भी न रुका चलता ही रहा,
चलते - चलते चलता ही रहा,
ऊबड़ - खाबड़, मैदानों में रहा,
झुग्गी - झोपड़ी, महलों में रहा!
लम्बी डगर करता रहा सफर,
अब बाँकी कम ही है डगर,
फिर भी थक जाता हूँ दो पग चलकर,
सब धुआँ - धुआँ सा दिखता है, पास डगर!
जो बीता, स्वप्न सरीखे बीत गया,
चलता ही रहा जबसे आया,
बचपन, जवानी सब, भूतकाल हुआ,
अब क्या है, दुखी होकर रोना आया!!
सतीश "बब्बा"